नज़ारा ये ज़मी का वीरान हैं
जिधर देखे तबाही औऱ बेजान हैं
देखकर ये मंज़र आसमान भी हैरान हैं
हम गुन्हेगारों को बख़्स दे मेरे मोला
तेरे नबी की उम्मत बहुत परेशान हैं
हर तरफ लाशें देखी नही जाती
हर तरफ से चीखों की आवाज़े सुनी नही जाती
जहां देखे अंधेरा ही अंधेरा छाया हैं
तेरे सिवा नही कोई आसरा हैं
तू रूठा हैं तो बेचैनी ही बेचैनी हैं
इस आलम ने तेरी एक ना मानी हैं
बेबस हो गए दुनिया के तमाम हाकिम
बस तू ही एक कदरदान हैं
तेरे नबी की उम्मत बहुत परेशान हैं
सारी फरियाद तुझ से शुरू तुझ पर खत्म हैं
तू ही सबका मालिक हैं तू ही हमदम हैं
तेरे एक इशारे से रोशन ये जहां हो जाएगा
इन काली रातों में भी एक जुगनू सा चमक जाएगा
हर अफसुर्दा चेहरा फिर से चहक जाएगा
इन अंधेरों को मिटाकर नया सवेरा हो जाएगा
हर रोज़ डर डर कर नही जिया जाता
हम गुन्हेगारो को बख़्स दे मेरे मोला
मायूस ये जिशान हैं
तेरे नबी की उम्मत बहुत परेशान हैं
Written by
zishan alam
Zishanalam9760@gmail.com
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