मेरे अधूरे ख़्वाबों को मुकम्मल कर दे मौला
मुझे कोई रास्ता या मंज़िल दिखा दे मौला
मैं गम के अंधेरों के साए में चल रहा हूं
मेरे मालिक मुझे कोई रोशनी तो दिखा दे मौला
मैं ग़मो का समंदर बन गया और फस गया मझधार में
तेरे सिवा कोई नही जो मेरी कश्ती को किनारे लगा दे मौला
जिस्म में बहुत आज़ार हैं अब चलने की कैफ़ियत नही
हकिमों के पास दवा नही हाकिम की तवज्जो दरकार हैं मौला
मैं तो गुमनाम राह का भटका हुआ मायूस सा मिस्कीन हूं
तेरी जात सबसे अफ़ज़ल हैं मेरी मुस्कुराहट को उज़्र दे दे मौला
बहुत दुःख दर्द समेट के रखे हैं सीने में मैंने क्या बताऊं
कम से कम मुझे मेरे हिस्से की हँसी तो दे दे मौला
शायद तू मुझ से खफ़ा हैं या तेरी नज़र मुझ पर नही
गर खफ़ा है तू मुझ से तो मेरी गलतियों को माफ कर दे मौला
मैं तेरा होकर तेरा नही बस अपनी फानी दुनिया में मगन हूं
हाए कितना खुदगर्ज़ हूं मैं मुसिबत में बस तुझे पुकारता हूं मौला
Write by- Zishan alam
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