सिलसिला चाहत क - SILSILA CHAHAT KA

 





 बातों बातों में जो बात ढल गई ।
वो अब लफ़्ज़ों में आ गई ।
सिलसिला ऐसा हुआ बातों का ।
रात भर शम्मा सी जल गई ।

किन लफ़्ज़ों में लिखू अपने इंतज़ार को तुम्हे ।
बे जुबां सा इश्क़ है मेरा खामोशी से ढूंढता है तुम्हे ।

कितना कुछ कहना है तुमसे ।
कभी बज़्म में आओ हमारी फुरसत निकालकर ।
चाहत का समंदर है इधर ।
कभी पलके उठाओ फ़ुरसत निकालकर।

अभी चिरागों को बुझने कैसे दू ।
मुझे उम्मीद है तेरे आने की ।
जज्बात लबों पर आते आते क्यों रोक लेती हो।
सारी हदें तोड़कर क्यों नही बंधन जोड़ लेती हो ।

फिर कोई ख्वाब देखू या कोई आरज़ू करू।
अब दिल का हाल जान ले ।
क्या खयाल है तेरे दिल का ।। 




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Write by ✎✎ zishan alam
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