सिलसिला चाहत क - SILSILA CHAHAT KA
बातों बातों में जो बात ढल गई ।वो अब लफ़्ज़ों में आ गई ।सिलसिला ऐसा हुआ बातों का ।रात भर शम्मा सी जल गई ।किन लफ़्ज़ों में लिखू अपने इंतज़ार को तुम्हे ।बे जुबां सा इश्क़ है मेरा खामोशी से ढूंढता है तुम्हे ।कितना कुछ कहना है तुमसे ।कभी बज़्म में आओ हमारी फुरसत निकालकर ।चाहत का समंदर है इधर ।कभी पलके उठाओ फ़ुरसत निकालकर।अभी चिरागों को बुझने कैसे दू ।मुझे उम्मीद है तेरे आने की ।जज्बात लबों पर आते आते क्यों रोक लेती हो।सारी हदें तोड़कर क्यों नही बंधन जोड़ लेती हो ।फिर कोई ख्वाब देखू या कोई आरज़ू करू।अब दिल का हाल जान ले ।क्या खयाल है तेरे दिल का ।।
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